सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, दलितों से भेदभाव को लेकर आंखें बंद नहीं कर सकते
सुप्रीम कोर्ट मुसलमान और ईसाई बने दलितों को भी आरक्षण का लाभ दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं की पर सुनवाई को राजी हो गया है। सिख और बौद्ध बने दलितों को लेकर भी यही मांग की गई है। इस मामले की विस्तार से सुनवाई हुई। इसी दौरान बेंच में शामिल जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि मतांतरण के बाद भी सामाजिक भेदभाव जारी रह सकता है।
(एन एल एन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ): सुप्रीम कोर्ट मुसलमान और ईसाई बने दलितों को भी आरक्षण का लाभ दिए जाने की मांग वाली याचिकाओं की पर सुनवाई को राजी हो गया है। सिख और बौद्ध बने दलितों को लेकर भी यही मांग की गई है। इस मामले की विस्तार से सुनवाई हुई। इसी दौरान बेंच में शामिल जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने कहा कि मतांतरण के बाद भी सामाजिक भेदभाव जारी रह सकता है। ऐसे में हम संवैधानिक मामले को लेकर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकते। जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि धार्मिक और सामाजिक भेदभाव अलग-अलग चीजें हैं। मैं किसी अलग मकसद से दूसरे धर्म में जा सकता हूं, लेकिन उसके बाद भी यदि सामाजिक भेदभाव जारी रहता है, तो फिर अनुसूचित जाति के आरक्षण की बात आती है। ऐसे में अदालत इस बात पर विचार क्यों नहीं कर सकती कि इन लोगों को अलग से आरक्षण दिया जाए या नहीं। जमीनी स्तर पर धर्मांतरण के बाद भी भेदभाव हो सकता है। इसलिए हम ऐसे जरूरी संवैधानिक मसले पर अपनी आंखें बंद नहीं रख सकते। वहीं केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में सभी पहलुओं पर विचार नहीं किया गया था, जिसके आधार पर मतांतरित दलितों को भी आरक्षण देने की मांग हो रही है। इस पर जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा कि यह रिपोर्ट उतने भी अनमने ढंग से तैयार नहीं की गई है, जितना आप कह रहे हैं। आपको पूरी रिपोर्ट को एक बार फिर से पढऩा चाहिए। आप उस रिपोर्ट के बारे में बेहद सामान्यीकरण वाला बयान दे रहे हैं।
गौरतलब है कि कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार ने मुस्लिम ओबीसी का चार प्रतिशत आरक्षण खत्म कर दिया। सरकार ने इस कोटे को वोक्कालिगा और लिंगायत के बीच बराबर दो-दो फीसदी बांट दिया। बोम्मई सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर गुरुवार को सुनवाई हुई। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पहली नजर में कर्नाटक सरकार का फैसला त्रुटिपूर्ण दिखता है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के सामने जो रेकॉर्ड पेश किया गया है, उससे जाहिर होता है कि कर्नाटक सरकार का इस मामले में लिया गया फैसला गलत अवधारणा पर आधारित है
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