न्यूज़लाइवनाउ – भारत का सबसे नजदीकी साझेदार देश भूटान के राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक का भारत दौरा खत्म हुआ लेकिन भारत की चिंताएं अभी खत्म नहीं हुई हैं. उनके भारत दौरे के कई मायने निकाले जा रहे हैं.
भूटान के राजा तब भारत आए जब चीन के साथ भूटान की सीमा विवाद को जल्द से जल्द सुलझा लेने की आपसी पहल हुई है. इस विवाद के लिए दोनों देशों के बीच साल 1984 से वार्ता चल रही है. भूटान नरेश ऐसे समय में भारत आए जब चीन के साथ भूटान के सीमा विवाद को जल्द से जल्द सुलझा लेने की आपसी पहल हुई है. दरअसल चीन और भूटान सीमा विवाद में उलझे हुए हैं. इस विवाद के लिए दोनों देशों के बीच साल 1984 से वार्ता चल रही है. अब तक 25 दौर की बातचीत की जा चुकी है.
चीन-भूटान के सीमा विवाद?
भूटान और चीन के बीच में उत्तरी और पश्चिमी हिमालय के इलाके में सीमा को लेकर विवाद है. इसमें डोकलाम का इलाका सबसे खास है क्योंकि इस इलाके पर चीन, भारत और भूटान दावा करते रहे हैं. अब चीन और भूटान आपसी सीमा विवादों को जल्द से जल्द सुलझा लेना चाहते हैं. दोनों देशों के इस फैसले ने भारत के लिए चिंता पैदा कर दी है. चीन भूटान के साथ मिलकर अपने उस ख्बाब को पूरा करना चाहता है जो उसके नेता माओ ने देखा था. माओ ने फाइव फिंगर पॉलिसी को लेकर एक सपना देखा था जिसे अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग पूरा करना चाहते हैं.
1940 के दशक में माओ चीन के सबसे बड़े नेता बनकर सामने आए. माओ का मानना था कि तिब्बत और उससे जुड़े इलाके चीनी साम्राज्य का हिस्सा थे. वे उन इलाकों को फिर से चीन में दोबारा मिलाना चाहते थे, हालांकि वर्तमान में चीन की सरकार की नीतियां माओ की नीतियों से मेल खाती हैं. माओ ने लद्दाख, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, भूटान और नेपाल को चीन की पांच उंगलियां बताया है.
भारत और भूटान ऐतिहासिक, पारंपरिक, सांस्कृतिक भौगोलिक और व्यापारिक संबंध हैं. दोनों देशों के रिश्ते मैत्रीपूर्ण रहे हैं. भारत ने भूटान की विकास में अरबों डॉलर का निवेश किया है.
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