भारत का इकलौता सक्रिय ज्वालामुखी, सबसे ज्यादा कौन सा शहर प्रभावित होगा फटने पे

न्यूज़लाइवनाउ – हम जिस ज्वालामुखी की बात कर रहे हैं वो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के पूर्वी हिस्से में स्थित है. लोकल लोग इसे अपनी भाषा में सोता हुआ शैतान कहते हैं. ज्वालामुखी विस्फोट से मचने वाली तबाही के निशान धरती के सीने पर कई जगह मिल जाएंगे. दुनिया में ऐसे कई देश हैं जो ज्वालामुखी विस्फोट के कहर को सदियों से झेलते आ रहे हैं. हालांकि, भारत इस मामले में बीते कई दशक से सुरक्षित रहा है. लेकिन क्या भविष्य में भी भारत इस खतरे से सुरक्षित रहेगा.

कहां है ये ज्वालामुखी

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि देश में एक ऐसा ज्वालामुखी मौजूद है जो लगातार सक्रिय है. वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि अगर इसमें विस्फोट हुआ तो फिर भारत को इसका कितना खामियाजा भुगतना होगा. चलिए आपको भारत के इकलौते सक्रिय ज्वालामुखी के बारे में विस्तार से बताते हैं. हम जिस ज्वालामुखी की बात कर रहे हैं वो अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के पूर्वी हिस्से में स्थित है. लोकल लोग इसे अपनी भाषा में सोता हुआ शैतान कहते हैं. इस ज्वालामुखी का नाम है बैरन द्वीप ज्वालामुखी. आपको जानकर हैरानी होगी कि ये सिर्फ भारत का ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया का इकलौता ऐसा ज्वालामुखी है जो फिलहाल सक्रिय है.

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वैज्ञानिक इस ज्वालामुखी को लेकर चिंतित हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि बीते कुछ वर्षों से भारत ने कई भूकंप के झटकों को महसूस किया है. ये भूकंप के झटके और सुनामी बैरन द्वीप ज्वालामुखी के विस्फोट का कारण बन सकते हैं. यही वजह है कि भारतीय वैज्ञानिक और दुनिया भर के शोधकर्ता इस बैरन द्वीप ज्वालामुखी पर अपनी नजर बनाए हुए हैं. इस बैरन द्वीप ज्वालामुखी की सबसे खतरनाक बात ये है कि ये ज्वालामुखी लगातार सक्रिय है और इसके अभी आगे भी सक्रिय रहने का अनुमान लगाया जा रहा है.

अब आते हैं इस सवाल पर कि अगर इस बैरन द्वीप ज्वालामुखी में विस्फोट हुआ तो सबसे ज्यादा कौन सा शहर प्रभावित होगा. दरअसल, अगर ऐसा हुआ तो इसका प्रभाव पूरे दक्षिण एशिया पर देखने को मिलेगा. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि विस्फोट के बाद ज्वालामुखी से उठने वाली राख से पूरा आसमान ढक जाता है. हालांकि, इससे सबसे ज्यादा परेशानी अंडमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर को होगी. ऐसा इसलिए क्योंकि ये शहर इस ज्वालामुखी से महज 150 किमी दूर है. इस ज्वालामुखी के बारे में कहा जाता है कि इसमें सबसे पहले साल 1787 में धुआं और लावा निकलते देखा गया था.

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