(न्यूज़लाइवनाउ -Kerala) केरल हाईकोर्ट ने कहा कि ‘स्विगी’ और ‘जोमैटो’ के जरिए रेस्तरां से खाना मंगाए जाने की बजाय बच्चों को उनकी मां द्वारा बनाए गए स्वादिष्ट भोजन का स्वाद लेने दें. कोर्ट ने कहा कि डिजिटल युग ने बच्चों के लिए अश्लील वीडियो को सुलभ बना दिया है. कोर्ट ने आगे कहा, ‘स्विगी’ और ‘जोमैटो’ के जरिए से रेस्तरां से खाना खरीदने के बजाय, बच्चों को उनकी मां द्वारा बनाए गए स्वादिष्ट भोजन का स्वाद लेने दें और बच्चों को खेलने दें.
केरल हाईकोर्ट का यह आदेश और फैसला आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज एफआईआर और उसके संबंध में उसके खिलाफ अदालती कार्यवाही को रद्द करने की याचिका पर आया है. बच्चे खेल के मैदान और अपनी मां के हाथ से बने भोजन की मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशबू के साथ घर वापस आते हैं. कोर्ट ने आगे कहा कि मैं इसे समाज के नाबालिग बच्चों के माता-पिता की बुद्धि पर छोड़ता हूं.
न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि किसी के निजी समय में दूसरों को दिखाए बिना अश्लील तस्वीरें या वीडियो देखना कानून के तहत अपराध नहीं है, क्योंकि यह व्यक्तिगत पसंद का मामला है. हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह के कृत्य को अपराध घोषित करना किसी व्यक्ति की निजता में दखल और उसकी निजी पसंद में हस्तक्षेप होगा.
न्यायमूर्ति पी वी कुन्हिकृष्णन का फैसला भारतीय दंड संहिता की धारा 292 के तहत एक 33 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ अश्लीलता के मामले को रद्द करते हुए आया, जिसे 2016 में पुलिस ने सड़क के किनारे अपने मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देखते हुए पकड़ा था. यह आदेश और फैसला आरोपी व्यक्ति की एफआईआर और उसके संबंध में उसके खिलाफ अदालती कार्यवाही को रद्द करने की याचिका पर आया.
हाईकोर्ट ने कहा कि पोर्नोग्राफी सदियों से प्रचलन में थी और नए डिजिटल युग ने इसे बच्चों के लिए भी अधिक सुलभ बना दिया है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में निर्णय लेने का प्रश्न यह है कि क्या कोई व्यक्ति दूसरों को दिखाए बिना अपने निजी समय में अश्लील वीडियो देखता है, यह अपराध है? कानून की अदालत यह घोषित नहीं कर सकती कि यह साधारण कारण से अपराध की श्रेणी में आता है. यह उनकी निजी पसंद है और इसमें हस्तक्षेप करना उनकी निजता में दखल के समान है.
आरोपी किसी अश्लील वीडियो या फोटो को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहा है
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि याचिकाकर्ता (आरोपी) ने सार्वजनिक रूप से वीडियो प्रदर्शित किया. कोर्ट ने कहा कि मेरी सुविचारित राय है कि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी गोपनीयता में अश्लील फोटो देखना अपने आप में आईपीसी की धारा 292 (अश्लीलता) के तहत अपराध नहीं है. इसी तरह, किसी व्यक्ति द्वारा अपनी गोपनीयता में मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देखना भी आईपीसी की धारा 292 के तहत अपराध नहीं है.
न्यायमूर्ति कुन्हिकृष्णन ने कहा ने कहा है कि अगर आरोपी किसी अश्लील वीडियो या फोटो को प्रसारित या वितरित करने या सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहा है, तो आईपीसी की धारा 292 के तहत अपराध बनता है. इसलिए, आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 292 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है. कोर्ट ने कहा और मामले के संबंध में मजिस्ट्रेट अदालत में सभी कार्यवाही रद्द कर दी.
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