जम्मू-कश्मीर में शांति और भाईचारे के साथ मनी ईद ,लोगो को मिली ढील ।
जम्मू -कश्मीर में बकरीद के अवसर पर शांति का माहौल है और स्थितियां सामान्य होते दिख रही है ।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : बता दें कि जम्मू -कश्मीर में बकरीद के अवसर पर शांति का माहौल है और स्थितियां सामान्य होते दिख रही है । इस दौरान श्रीनगर में डाउनटाउन के ईदगाह इलाके का मशहूर मैदान। आमतौर पर क्रिकेट या फिर प्रदर्शनियों के लिए मशहूर है, लेकिन बकरीद से पहले ये घाटी में भेड़ों का सबसे बड़ा बाजार होता है। ढाई सौ किमी दूर से परबत और घाटियों को पैदल पार कर गुज्जर और बक्करवाल हर साल अपनी भेड़-बकरी लेकर यहां पहुंचते हैं। इस बार भी आए हैं, लेकिन इस बार जानवरों के खरीदार कम हैंं। कश्मीर का हर परिवार ईद पर दो से तीन भेड़ों की कुर्बानी देता है। इस बार कुर्बानी देने की जगह लोग मदरसों में पैसे देने की सोच रहे हैं। जो कुर्बानी देने का मन बना भी रहे हैं तो बमुश्किल एक भेड़ की। ऐसी सख्ती बनी रही तो भेड़ का मीट रिश्तेदारों तक पहुंचाएंगे कैसे, आखिर इसकी बर्बादी गुनाह जो है। यूं तो एक भेड़ 25 से 30 हजार के बीच मिलती है, 260 रुपए किलो के हिसाब से। इस बार बक्करवाल इसे 12 से 20 हजार के बीच भी बेचने को राजी हैं। भेड़ों की कम कुर्बानी से घाटी में करीब 300 करोड़ रु. के नुकसान का अंदेशा है। पिछले साल ईद वाले हफ्ते में कश्मीर में अकेले जम्मू-कश्मीर बैंक के एटीएम से 800 करोड़ रु. निकाले गए थे। इनका सबसे ज्यादा हिस्सा कुर्बानी के भेड़-बकरी, कपड़ों, बेकरी आइटम और ईदी पर खर्च होता है। पहला मौका है जब सफाकदल के मकबूल साहब अपने नाती-पोतों के लिए कपड़े नहीं खरीद पा रहे। बंद दुकानों में ईद के लिए लाया गया बेकरी और ड्रायफ्रूट्स जमा हैं। हालांकि रविवार को घाटी में कर्फ्यू में छूट दी गई, ताकि लोग जरूरी सामान खरीद सकें। राशन और बेकरी की दुकानें रविवार को खुलीं और उन पर जमकर बिक्री भी हुई। ईद पर उन चीजों पर भी खर्च किया जाता है, जिनके लिए सालभर इंतजार होता है। अनंतनाग के रउफ कहते हैं कि उन्होंने अपनी सारी गाड़ियां बकरीद पर ही खरीदी हैं, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। इंटरनेट बंद होने से कई सरकारी मुलाजिमों को सैलरी भी नहीं मिली है। किसी भी सामान्य परिवार का ईद पर 50 से 80 हजार रुपए खर्च होता है, जो इस साल आधा रहेगा। इससे ईद के कारोबार को कम से कम 500 करोड़ रु. का नुकसान होगा। खर्च और सेलिब्रेशन चाहे जैसा हो, पर दिल्ली से आनेवाली हर फ्लाईट ईद मनाने घर आ रहे लोगों से भरी है। लेकिन एयरपोर्ट पर उतरने वाले चेहरों पर असमंजस है। दूर-दराज गांवों में अपने घरों तक कैसे पहुंचेंगे? टैक्सी मिलेगी? हालात ठीक होंगे? ऐसे कई सवाल चेहरों पर हैं। इनमें कुछ स्टूडेंट्स हैं और बाकी बाहर नौकरी करने वाले। ज्यादातर वो लोग जिनकी टिकटें पहले से बुक थीं। जब हफ्तेभर से घर पर बात नहीं हुई तो इन्होंने टिकट कैंसिल करने की बजाए घर पहुंचने का फैसला किया। साइमा मुश्ताक श्रीनगर ने नाटिपोरा में रहती हैं। पिता, चाचा, भाई सभी पुलिस में हैं और खुद बांग्लादेश में मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं। बांग्लादेश से सीधी फ्लाइट ली थी, पर मौसम खराब होने के चलते उन्हें श्रीनगर पहुंचने में एक दिन देरी हो गई। उन्हें नहीं पता कि वह एयरपोर्ट से घर कैसे जाएंगी। घरवालों की फिक्र ही है कि कश्मीर खींच लायी, वरना यहां घरों में कैद होना किसी को गंवारा नहीं। श्रीनगर ने पॉश इलाके सिविल लाइन्स में रहनेवाले रिजवान के साथ ऐसा पहली बार हुआ कि वो अम्मी से इतने दिनों तक बात नहीं कर पाए हैं। वह कहते हैं कि हुर्रियत की हड़ताल और बर्फ के चलते घर में बंद रहना और सामान जुटाने की आदत हम कश्मीरियों को हमेशा से है, पर फोन बंद होना अजाब है। ज्यादा दिक्कत ईद पर आने-जाने वालों को हो रही है। दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले इशफाक ईद में नहीं आने वाले थे। लेकिन कैंपस में जब लोग अनुच्छेद- 370 हटने पर पटाखे फोड़ने लगे और उसे चिढ़ाने लगे तो उसके लिए वहां रहना मुश्किल हो गया। इशफाक कहते हैं- ‘सब मुझसे पूछने लगे कि तुम्हें कैसा लग रहा है? अब उन्हें क्या बताता… कई लोगों को तो कह दिया कि मैं जम्मू से हूं और बहुत खुश हूं, ताकि होस्टल के लड़के मुझे परेशान न करें।’ इशफाक कहते हैं जब आखिरी बार घरवालों से बात हुई तो सब डरे हुए थे। उन्हें लग रहा था पता नहीं कश्मीर में ऐसा क्या होनेवाला है कि टूरिस्टों को बाहर निकाल रहे हैं। उनके घरवालों ने ये कहकर आखिरी बार फोन काटा था कि जिंदा रहे तो जरूर बात करेंगे। खैरियत है कि जंग जैसा कुछ नहीं हुआ। 370 के मसले पर अभी कोई कुछ नहीं कह रहा, लेकिन राशिद डार को उम्मीद है इस नए फैसले से शायद अब उनके यहां भी नौकरियां आएंगी। उन्हें घाटी से दूर रोजगार ढूंढने नहीं जाना पड़ेगा। राशिद कहते हैं नेताओं ने कश्मीर का बेड़ा गर्क किया है। उमर अब्दुल्ला ने बेंटले और ऑडी कार ली जबकि मुझे हर रोज 20 किमी पैदल चलकर बिल बांटने जाना पड़ता था। यही वजह थी कि वह अपनों को छोड़कर नौकरी करने दिल्ली आया। उसे उम्मीद है कि अगली ईद उसे यूं बाहर से मेहमान बनकर नहीं आना पड़ेगा।वैसे कश्मीर में इस वक़्त स्थिति सामान्य है और लोग शांति से बकरीद मना रहे हैं ।