2017 में कई भयंकर तूफ़ान आए. इस साल आए 10 तूफ़ानों में से 6 तूफ़ान बड़ी कैटेगरी 3 या उससे अधिक कैटेगरी के थे, जो कि बीते सालों की अपेक्षा अधिक रहे.
बिना किसी कमज़ोर उष्णकटिबंधीय तूफानों के, लगभग 10 तूफ़ान एक ही साथ बने थे. 1893 के बाद से ये पहली बार था जब धरती पर ऐसी हरकत दर्ज की गई थी.
तो क्या तूफ़ान बद से बदतर होते जा रहे हैं और क्या जलवायु परिवर्तन से इनका कोई लेना-देना है?
साल 2017 में अटलांटिक तूफ़ान का मौसम ख़ास तौर से काफी ख़राब रहा.
अगस्त में अमरीका पर हार्वी तूफ़ान ने दस्तक दी. ये तूफ़ान अपने साथ किसी भी उष्णकटिबंधीय तूफ़ान से कहीं अधिक, 1,539 मिलीमीटर तक बारिश साथ ले कर आया.
इस कारण बाढ़ की ऐसी स्थिति देखने को मिली जो 500 सालों में एक बार मिलती है. इस कारण टेक्सस के ह्यूस्टन शहर को 200 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ.
लेकिन विडंबना ये है कि “500 सालों में एक बार आने वाली” यह स्थिति ह्यूसटन में बीते तीन सालों में तीसरी बार आई.
सितंबर आया तो अपने साथ इरमा तूफ़ान लेकर आया जिसने कैरिबियाई ट्वीपों में तबाही मचा दी. बेहद शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात इरमा अपने सबसे विकराल रूप में था और इसे कैटेगरी फ़ाइव की श्रेणी में डाला गया था.
अमरीका की राष्ट्रीय मौसम सेवा के अनुसार इरमा तूफ़ान की सर्वाधिक गति 257 किलोमीटर प्रति घंटा मापी गई.
लगभग 37 घंटों तक तेज़ हवाएं चलती रहीं- पूरी दुनिया में आने वाले उष्णकटिबंधीय तूफ़ानों को देखें तो इरमा के दौरान सबसे ज़्यादा देर तक हवाएं चली थीं.
इसके बाद आया तूफ़ान मारिया. ये भी कैटगरी 5 का तूफ़ान था. 281 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से तेज़ हवाएं चली जिस कारण प्यूर्टे रिको को भारी नुक़सान झेलना पड़ा.
इस कारण पावर ग्रिड बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया. पूरे द्वीप पर बिजली की आपूर्ति बंद हो गई और यहां रहने वाले तकरीबन 35 लाख लोगों के घरों में अंधेरा छा गया.
इसके बाद ओफ़ेलिया पुर्तगाल और स्पेन से टकराया. इससे पहले कोई उष्णकटिबंधीय तूफ़ान पूर्व की दिशा में इतनी दूर नहीं पहुंचा था.
लेकिन इतना सब होने बार भी कई मायनों में 2017 सबसे बुरा नहीं रहा. इस साल 1980 में आए तूफ़ान एलेन की तरह का कोई भयावह तूफ़ान नहीं आया. तूफ़ान एलेन में 305 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से तोज़ हवाएं चली थीं.
ना ही इस साल 2005 की तरह सबसे अधिक तूफ़ान आए. 2005 में दुनिया भर में कुल 28 ऐसे तूफ़ान आए जिन्हें कोई नाम दिया गया, इनमें से 7 भयंकर तूफ़ान थे जिनमें से एक था कैटरीना.
लेकिन साल 2017 ऐसा साल था जब तूफ़ानों के कारण भारी तबाही हुई. हालांकि तूफ़ान के कारण हुए नुक़साम के आंकड़ों में सुधार किया जाता रहा है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक़ इनके कारण 385 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ है.
नेशनल हरिकेन सेंटर के अनुसार 2005 में तूफ़ानों के कारण 144 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ था. अगर महंगाई की दर के साथ इसे आज की तारीख़ में देखा जाए तो लगभग 189 अरब डॉलर होगा.
तूफ़ानों की बात करें तो साल 2017 बेहद बुरा गुज़रा. लेकिन क्या वक्त के साथ-साथ तूफ़ान और शक्तिशाली और भयंकर होते जा रहे हैं?
साल 1924 के बाद से अब तक कैटेगरी 5 के 33 तूफ़ान आए जिनमें से 11 तूफ़ान बीते 14 सालों में ही आए हैं.
हम जानते हैं कि तूफान समुद्र में चलने वाली गर्म हवाओं के ज़रिए ही विकराल रूप लेते हैं और बीते 100 सालों से समुद्र का वैश्विक औसत तापमान 1 डिग्री से बढ़ा है.
लेकिन जब आप जब से रिकॉर्ड रखे गए हैं तब से हर साल तूफ़ानों की ताकत देखते हैं तो कुछ साल अधिक बुरे होते हैं.
मौसम वैज्ञानिक साल के सभी तूफानों की कुल ताकत का पता लगाने के लिए एक्यूमुलेटेड साइक्लोन एनर्जी की गणना करते हैं. इसमें हाल के सालों में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं दर्ज की गई है.
इसमें कोई संदेह नहीं कि समंदर पहले की तुलना में गर्म होते जा रहे हैं लेकिन कुछ सालों में कई अन्य कारणों से तूफ़ान भयंकर नहीं बन पाते.
तूफ़ान के बनने में सहारा मरूस्थल में चलती रेत की आंधी का भी दखल हो सकता है और अफ्रीकी इलाकों में आने वाले तूफानों की भूमध्य रेखा से निकटता का भी इस पर असर हो सकता है.
लेकिन देखा जाए तो यह विडंबना रही है कि तूफ़ान तेज़ हवाओं के साथ कम ही आते हैं.
अटलांटिक में तेज़ हवाएं तूफ़ान में हस्तक्षेप करती हैं और इस कारण ये तूफ़ान भयंकर रूप नहीं ले पाते.
अल नीनो की एक प्रक्रिया के दौरान भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर सामान्य से अधिक गरम हो जाता है. इस कारण वैश्विक हवा के पैटर्न में बदलाव आता है और अटलांटिक में तेज़ हवाएं चलती हैं. इसका मतलब ये है कि जिस साल अल नीनो होता है उस दौरान कम तूफ़ान बनते हैं.
लेकिन जब प्रशांत महसागर अपेक्षाकृत ठंडा होता है (जिसे ला नीना के नाम से जाना जाता है) तो इसका उल्टा होने लगता है और तूफ़ानों का बनना आसान हो जाता है. साल 2017 ला नीना का है. दरअसल, हर दशक के साथ ला नीना के दौरान बनने वाले तूफानों की ताकत बढ़ती जा रही है.
तेज़ हवाएं तूफ़ान के बनने का एक कारण ही हैं, जलवायु परिवर्तन भी इस बात पर असर डालता है कि किस साल अधिक तूफ़ान आएंगे.
तूफ़ान के दौरान बारिश से भी इलाके को भारी नुक़सान पहुंचता है. जलवायु परिवर्तन ना भी होता तो तूफ़ान हार्वी के कारण ह्यूस्टन में भारी बारिश होती. लेकिन यह मानना सही होगा कि सौ साल पहले की तुलना में इस साल ये अपने साथ अधिक बारिश लेकर आया था.
बीते सौ सालों में वैश्विक तापमान 1 डिग्री बढ़ा है और हवा गर्म हुई है. गर्म हवा में पानी वहन करने कि क्षमता अधिक होती है.
इस दशक में अमरीका में अत्यधिक बारिश की बढ़ती घटनाओं की ये वजह हो सकती है. निर्माण कार्य एक और वजह है जिस कारण किसी इलाके को अधिक नुक़सान पहुंचता है.
1960 की तुलना में ह्यूस्टन की जनसंख्या दोगुनी से अधिक हो गई है और यहां बीस लाख से अधिक लोग रहते हैं. अब रिहाइशी इलाके उन जगहों पर बनने लगे हैं जहां ज़मीन सूखी है. इस कारण भी घरों को अधिक नुक़सान होता है.
साथ ही ध्रुवों पर बर्फ की चादर यानी और ग्लेशियर पिघल रहे हैं जिस कारण समुद्र का स्तर बढ़ रहा है.
गर्म पानी अधिक जगह लेता है और जैसे-जैसे समुद्र गर्म होता है समुद्र में पानी का स्तर बढ़ता है.
अमरीका में मेक्सिको की खाड़ी के तट के आसपास समुद्र में पानी के स्तर का तेज़ी से बढ़ना देखा जा रहा है. यहां लुईज़डियाना के यूजीन द्वीप पर हर साल समुद्र 9.6 मिलीमीटर तक बढ़ रहा है.
इन सब कारणों से बाढ़ के मामले में कई इलाके अतिसंवेदनशील हो जाते हैं और तूफ़ान की स्थिति में बाढ़ का ख़तरा बढ़ जाता है.
जैसे-जैसे दुनिया गर्म होती जा रही है अधिक तूफ़ान आने की संभावनाएं बढ़ रही हैं और उनके कैटेगरी 5 के स्तर के शक्तिशाली होने का ख़तरा भी बढ़ रहा है.