28 जनवरी: अपना बलिदान देते हुए भगत सिंह जैसे वीरों की प्रेरणा बने शेर ए हिंद “लाला लाजपतराय” जयंती

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : नई दिल्ली। इनकी जयंती ये इशारा कर रही है कि देश के इतिहास को फिर से लिखने की और सही मायने में सहेजने की जरूरत है  .क्या उस इतिहास और उस इतिहासकार को निष्पक्ष माना जा सकता है जो अभी भी हम पर अत्याचार कर के गए अंग्रेजो के आगे सर शब्द लिखता हो ..या उन्हें देशभक्त माना जा सकता है जिन्होंने भगत सिंह व चन्द्रशेखर आज़ाद को उग्रपंथी या हिंसक बताया हो.. उसी प्रकार से देश के लिए अपना बलिदान दे कर क्रांति की चिंगारी भड़का देने वाले लाला लाजपतराय जी की जयंती पर छाई खामोशी भी ये सवाल करती है कि देश को उसके सच से वंचित क्यों रखा गया जो अधिकार उसे हर हाल में जानने का था. ये भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे। इन्हें पंजाब केसरी भी कहा जाता है। इन्होंने पंजाब नैशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कम्पनी की स्थापना भी की थी। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल-बाल-पाल में से एक थे। इस महान व्यक्तित्व का जन्म आज के ही दिन अर्थात 28 जनवरी सन 1865 में पंजाब के मोगा जिले में हुआ था. इन्होंने कुछ समय हरियाणा के रोहतक और हिसार शहरों में वकालत की। ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के प्रमुख नेता थे। बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल के साथ इस त्रिमूर्ति को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता था।

इन्हीं तीनों नेताओं ने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की थी बाद में समूचा देश इनके साथ हो गया। इन्होंने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। लाला हंसराज के साथ दयानन्द एंग्लो वैदिक विद्यालयों का प्रसार किया भाग जिन्हें आजकल डीएवी स्कूल्स व कालेज के नाम से जाना जाता है। लालाजी ने अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा भी की थी। 30 अक्टूबर 1928 को इन्होंने लाहौर में साइमन कमीशन के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जिसके दौरान हुए लाठी-चार्ज में ये बुरी तरह से घायल हो गये। उस समय इन्होंने कहा था: “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।” और वही हुआ भी; लालाजी के बलिदान के 20 साल के भीतर ही ब्रिटिश साम्राज्य खत्म गया। 17 नवंबर 1928 को इन्हीं चोटों की वजह से इनका देहान्त हो गया। लाला जी की मृत्यु से सारा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने लालाजी की मौत का बदला लेने का निर्णय किया ।

इन जाँबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया। लालाजी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह को फाँसी की सज़ा सुनाई गई। लालाजी ने हिन्दी में शिवाजी, श्रीकृष्ण और कई महापुरुषों की जीवनियाँ लिखीं। उन्होने देश में और विशेषतः पंजाब में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बहुत सहयोग दिया। देश में हिन्दी लागू करने के लिये उन्होने हस्ताक्षर अभियान भी चलाया था। आज उस महान बलिदानी राष्ट्रभक्त की जयंती पर उन्हें NLN परिवार बारंबार नमन करते हुए उनकी पावन गरिमामय जीवन गाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है ..लाला लाजपतराय जी अमर रहें!

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