Raj Kapoor Birth Anniversary: राज कपूर की दरियादिली ने बनाया उन्हें सबसे कामयाब शोमैन, सुनकर हैरान रह जाएंगे

(एन एल एन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : हिंदी सिनेमा को एक नई राह दिखाने वाले प्रसिद्ध एक्टर, फिल्म डायरेक्टर, प्रोड्यूसर थे । 14 दिसंबर 1924 में पाकिस्तान के पेशावर में पैदा हुए । अपने पिता पृथ्वी राज कपूर की तरह हिंदी सिनेमा में राज कपूर का योगदान अविश्वसनीय है। कभी आवारा तो कभी श्री 420, कभी अनाड़ी तो कभी जोकर बनकर सबका दिल जीतने वाले राज कपूर की अदाकारी की तरह उनका दिल भी सौ फीसदी सोने जैसा खरा था। राज कपूर की दरियादिली ऐसी थी कि बड़े बड़े कलाकार भी उनके कायल हो गए। राज कपूर ने लव स्टोरी को बड़े ही मनमोहक अंदाज में स्क्रीन पर पेश कर फिल्म इंडस्ट्री को ही नहीं दर्शकों को भी चौंका देते थे । प्रयोग करने के लिए मशहूर राज कपूर अपने दौर के सबसे बड़े शोमैन थे । राज कपूर सिर्फ इंडिया ही नहीं विदेशों में भी बेहद लोकप्रिय थे । उनकी फिल्मों और गाने के दीवाने सरहद पार लोग भी हुआ करते थे, आज भी हैं । राज कपूर की लोकप्रियता को लेकर एक-दो नहीं बल्कि कई दिलचस्प किस्से हैं । राज कपूर की जयंती पर बताते हैं । राज कपूर की यूं तो कई फिल्मों को देश-विदेश में पसंद किया गया लेकिन फिल्म ‘आवारा’ एक ऐसी फिल्म है जिसे लेकर सोवियत के लोगों में दीवानगी का आलम ये था कि बारिश और बर्फ की परवाह किए बिना घंटों लाइन में खड़े होकर टिकट खरीदते थे । इस फिल्म को बनाने में राज कपूर ने दो साल लगाए थे । कम लोगों को पता होगा कि इस फिल्म को ‘ब्रदाग्या’ नाम से रूसी भाषा में भी डब किया गया था ।

राज कपूर को भारतीय सिनेमा के इतिहास में सबसे महान और सबसे प्रभावशाली फिल्म निर्माता और अभिनेता माना जाता है। उन्हें समीक्षकों और अपने चाहने वालों से हमेशा सराहना ही मिली। फिल्मों के इतिहासकार और सिनेमा के शौकीन लोग उन्हें हिंदी सिनेमा का चार्ली चैपलिन कहते थे। उन्होंने अपनी फिल्मों से हमेशा दर्शकों का मनोरंजन किया। हिंदी सिनेमा को एक से एक बेहतरीन फिल्में देने के लिए उन्हें तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और 11 फिल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें फिल्मों के सबसे बड़े सम्मान ‘दादासाहेब फाल्के’ अवार्ड से भी नवाजा गया। कला में अपना योगदान देने के लिए भारत सरकार ने उन्हें देश के तीसरे सबसे बड़े सम्मान पद्म भूषण से भी अलंकृत किया। उन्होंने अपने पूरे फिल्मी करियर में दर्जनों सुपरहिट फिल्में दीं। आज उनके जन्मदिन पर हम आपको उनकी जिंदगी की कुछ सुपरहिट फिल्मों से रूबरू कराते हैं।

नेहरू के स्वागत में जब गाया गया ‘आवारा हूं’
राज कपूर और उनकी फिल्मों को लेकर सोवियत संघ में तो कई दंतकथाए हैं । कहते हैं कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जब रूस गए तो उन्हें सरकारी भोज दिया गया । इस दौरान वहां के तत्कालीन प्राइम मिनिस्टर निकोलाई बुल्गानिन के बोलने की बारी आई तो उन्होंने अपने मिनिस्टर्स के साथ राज कपूर की फिल्म का फेमस गाना ‘आवारा हूं’ गाया तो नेहरू के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा ।

राज कपूर को किसी राजा से कम सम्मान नहीं मिलता था
मशहूर फिल्ममेकर यश चोपड़ा ने एक बार राज कपूर के जलवे के बारे में बखान करते हुए आंखों देखा हाल सुनाया था । यश चोपड़ा ने बताया था ‘हम 1976 में ताशकंद फिल्म समारोह में गए थे । मैं पहले भी कई समारोह का हिस्सा बन चुका था लेकिन विदेशी धरती पर भारतीय फिल्म निर्माताओं से राजा जैसा सलूक मैंने राज कपूर के साथ ही देखा था । हम लोग 48 प्रतिनिधिमंडल थे, सबके लिए एक खास बस का इंतजाम किया गया था सिर्फ राज कपूर के लिए एक बड़ी कार और दुभाषिया होता था । ताशकंद से समरकंद जाने के लिए एक ट्रेन की सीटें हमारे लिए रिजर्व थीं लेकिन राज कपूर के लिए पूरा डिब्बा रिजर्व था । जब हम समरकंद पहुंचे तो ऐसा लग रहा था कि स्टेशन पर राज कपूर को लेने पूरा शहर ही उमड़ पड़ा था’ ।

नादिरा के साथ राज कपूर
इंडिया के लोगों को देख ‘आवारा हूं’ गाने लगते थे चीनी
चीन में भी राज कपूर बेहद पॉपुलर थे। उनकी बेटी ऋतु नंदा ने एक बार मीडिया को बताया था कि ‘1996 में रणधीर कपूर और मैं चीन यात्रा पर गए हुए थे, लोग हमे देखते ही ‘आवारा हूं’ गाने लगते। जबकि वहां के लोगों को ये नहीं पता था कि ये दोनों राज कपूर के बच्चे हैं, वो तो बस इंडियन समझ गाना सुनाते थे’। ऐसी थे फिल्म इंडस्ट्री के पहले शोमैन राज कपूर।

नीलकमल (1947)
1947 में आई फिल्म ‘नीलकमल’ को किदार शर्मा ने निर्देशित और निर्मित किया है। इस ड्रामा फिल्म में पहली बार राजकपूर ने मुख्य भूमिका निभाई थी। फिल्म में दो राजकुमारियों को तख्तापलट के बाद उनके महल से बाहर निकाल दिया और एक अछूत परिवार के साथ रहने के लिए भेज दिया जाता है। दोनों बहनों को एक कलाकार से प्यार हो जाता है, जिसके कारण उनमें से एक आत्महत्या कर लेती है। इस ब्लैक एंड वाइट फिल्म में राजकपूर, मधुबाला और बेगम पारा मुख्य भूमिका में थे।
आग (1948)
साल 1948 में आई फिल्म ‘आग’ एक ड्रामा फिल्म है। इसका निर्देशन और निर्माण राजकपूर ने किया है। कहानी में केवल अपनी कानून की परीक्षा में असफल हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उसे अपने घर से बाहर निकाल दिया जाता है। वह अपने दोस्त राजन के पास आता है। केवल का एक स्टेज कलाकार बनने का सपना है। इस सपने को पूरा करने के लिए उसका दोस्त राजन केवल की पूरी मदद करता है। राजकपूर ने इसी फिल्म से निर्माता और निर्देशकों की दुनिया में कदम रखा। यह नरगिस के साथ राजकपूर की पहली फिल्म थी। राजकपूर और नरगिस के अलावा प्रेमनाथ और कामिनी कौशल फिल्म में मुख्य भूमिका में थे।
आवारा (1951)
वर्ष 1951 की फिल्म ‘आवारा’ एक क्राइम ड्रामा फिल्म है। इसे राजकपूर ने निर्देशित और निर्मित किया है। कहानी में राज उस व्यक्ति की हत्या करता है जो उसके माता-पिता के अलग होने के लिए जिम्मेदार था। फिर उसे मुकदमे में भेज दिया जाता है और जज का सामना करना पड़ता है। वह जज उसके बेगुनाह पिता हैं, जो अपनी बेगुनाही साबित करने की कोशिश करते हैं। हिंदी सिनेमा के इतिहास में यह फिल्म एक मील का पत्थर साबित हुई। इसकी ख्याति सोवियत संघ, पूर्वी एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और पश्चिमी यूरोप तक फैली। इसका गाना ‘आवारा हूं’ सोवियत संघ, चीन, बुल्गारिया, तुर्की, अफगानिस्तान और रोमानिया तक हिट हुआ। इस फिल्म को 1953 में कांन्स फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड प्राइज के लिए भी नामित किया गया था। टाइम मैगजीन ने आवारा को 100 सबसे बेहतरीन फिल्मों की लिस्ट में भी शामिल किया। फिल्म में राजकपूर, नरगिस, पृथ्वीराज कपूर और लीला चिटनीस मुख्य भूमिका में हैं।
बूट पॉलिश (1954)
बूट पोलिश एक ड्रामा फिल्म है। इसे प्रकाश अरोरा ने निर्देशित और खुद राजकपूर ने निर्मित किया है। कहानी में कमला अपनी बहन की मौत के बाद भाई-बहन बेलू और भोला को भीख मांगने के लिए मजबूर करती है। वे जीवित रहने के लिए जूते पॉलिश करना सीखते हैं और भीख मांगने से इंकार करते हैं, लेकिन उनकी किस्मत तब बदलती है जब वह अलग होते हैं। इस फिल्म को बेस्ट फिल्म का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। साथ ही कांन्स फिल्म फेस्टिवल में नामित भी किया गया। राजकपूर, कुमारी नाज, रतन कुमार और चाँद बुर्के फिल्म की मुख्य भूमिका है।
श्री 420 (1955)
फिल्म ‘श्री 420’ एक क्राइम ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म को राजकपूर ने निर्मित और निर्देशित किया है। फिल्म की कहानी में राज एक अनैतिक जीवन शैली का शिकार हो जाता है, जब एक अमीर व्यापारी सोनाचंद, उसे इसमें शामिल करता है। हालांकि, जब राज को सोनाचंद के भद्दे तरीके का पता चलता है, तो वह संशोधन करने का फैसला करता है। यह फिल्म साल 1955 की सबसे ज्यादा पैसा कमाने वाली फिल्म है। इसको बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवार्ड भी मिला। इसका गाना ‘मेरा जूता है जापानी’ आजाद भारत में एक देशभक्ति गाने का प्रतीक माना गया। फिल्म में राजकपूर, नरगिस और नादिरा मुख्य भूमिका में हैं।
फिर सुबह होगी (1958)
1958 की फिल्म ‘फिर सुबह होगी’ एक ड्रामा फिल्म है। इसे रमेश सैगल ने निर्मित और निर्देशित किया है। फिल्म की कहानी में सोनी को विवाहित हरबंसलाल से शादी करने से बचाने के लिए, राम एक साहूकार को लूटने जाता है, लेकिन वह उसे मार देता है। जैसे ही वह कानून से भागता है, एक निर्दोष व्यक्ति पकड़ा जाता है और उसे सजा सुनाई जाने वाली होती है। यह फिल्म एक उपन्यास ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ पर आधारित है। बेस्ट एक्टर के लिए राजकपूर को इस फिल्म में फिल्मफेयर के लिए नामित किया गया। इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट घोषित किया गया था। फिल्म में राजकपूर, माला सिन्हा और रेहमान मुख्य किरदार में हैं।
अनाड़ी (1959)
अनाड़ी एक म्यूजिकल कॉमेडी फिल्म है। इसको हृषिकेश मुखर्जी ने निर्देशित किया है। कहानी में राज, एक ईमानदार आदमी, खुद को मुसीबत में पाता है जब उस पर अपनी मकान मालकिन की हत्या का आरोप लगाया गया, जिसे जहर दिया गया था। हालांकि, वह कानून से बच जाता है और अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए सबूत खोजने के लिए निकल पड़ता है। इस फिल्म का तमिल भी रीमेक किया गया। राजकपूर को इस फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। यह उन कुछ फिल्मों में से एक है जिसमें ललिता पवार ने सकारात्मक किरदार निभाया है। फिल्म के मुख्य किरदार राजकपूर, नूतन, ललिता पवार और मोतीलाल हैं।
जिस देश में गंगा बहती है (1960)
1960 की फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ एक ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म के निर्माता राजकपूर और निर्देशक राधू करमाकर हैं। कहानी में राजू पुलिस को डाकुओं के एक ग्रुप के बारे में सूचित करता है, भले ही वह मुखिया की बेटी के साथ प्यार करता हो। पुलिस ने कबीले को मारने के लिए जाल बिछाया। आगे की कहानी यह डाकुओं को मरने और उसके प्यार को बचाने के आसपास घूमती है। इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर हिट घोषित किया गया था। इस फिल्म को आठ फिल्मफेयर के लिए नामित किया गया था जिसमें से इसने चार जीते। फिल्म के मुख्य कलाकार पद्मिनी, राजकपूर, और प्राण हैं।
संगम (1964)
संगम 1964 की एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म है। इसे राजकपूर में निर्देशित किया है। और मेहबूब स्टूडियो और फिल्मिस्तान स्टूडियो के साथ मिलकर निर्मित भी किया है। जब राधा सुन्दर को अस्वीकार कर देती है, तो सुन्दर राधा के लिए अपनी योग्यता साबित करने के लिए तैयार हो जाता है। वह अंततः उससे शादी करने का प्रबंधन करता है, लेकिन जब वह एक प्रेम पत्र लिखता है तो एक अचंभे में आ जाता है। यह फिल्म काफी हद तक 1939 की हॉलीवुड फिल्म ‘गॉन विथ द विंड’ से प्रेरित है। यह राजकपूर की पहली रंगीन फिल्म है। बॉक्स ऑफिस पर इस फिल्म ने अच्छा व्यापर किया। इस फिल्म को 11 फिल्मफेयर नामांकन मिले जिसमें से इसने चार पर कब्जा किया। साथ ही इस फिल्म ने छः बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट असोशिएशन अवार्ड भी जीते। फिल्म के मुख्य कलाकार राजकपूर, राजेंद्र कुमार और वैजन्तीमाला हैं।
मेरा नाम जोकर (1970)
फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म है। इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक राजकपूर हैं। फिल्म की कहानी में राजू ने जीवन भर दिल के मामलों में कई बाधाओं और निराशाओं का सामना किया। लेकिन एक सर्कस में क्लोन के रूप में, वह अपने दर्शकों को अपने दुखों की कीमत पर हंसाने की कोशिश करता है। यह फिल्म हिंदी सिनेमा की सबसे लम्बी फिल्म है। संगम के बाद यह एक ब्लॉकबस्टर फिल्म थी। कहते हैं ये फिल्म इनका ड्रीम प्रोजेक्ट थी। इसको बनने में छः साल लगे थे इसलिए इसका प्रचार खूब हुआ। शुरुआत में इस फिल्म को समीक्षकों और दर्शकों ने नकार दिया था, जिसके बाद राजकपूर पर आर्थिक संकट आन पड़ा था। फिल्मों के जानकार आज इस फिल्म को मास्टरपीस कहते हैं। इस फिल्म की अद्वितीयता को देखते हुए पांच फिल्मफेयर और तीन नेशनल अवार्ड से सुशोभित किया गया।

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