(एनएलएन मीडिया-न्यूज़ लाइव नाऊ):हमारे धर्मशास्त्रों में आत्मज्ञान की साधना के लिए तीन गुणों की अनिवार्यता बताई गई है- बल, बुद्धि और विद्या। यदि इनमें से किसी एक गुण की भी कमी हो, तो साधना का उद्देश्य सफल नहीं हो सकता है। सबसे पहले, तो साधना के लिए बल जरूरी है। निर्बल व कायर व्यक्ति साधना का अधिकारी नहीं हो सकता है। दूसरे, साधक में बुद्धि और विचार शक्ति होनी चाहिए। इसके बिना साधक पात्रता विकसित नहीं कर पाता है। तीसरा, अनिवार्य गुण विद्या है। विद्यावान व्यक्ति ही आत्मज्ञान हासिल कर सकता है।
महावीर हनुमान के जीवन में इन तीनों गुणों का अद्भुत समन्वय मिलता है। इन्हीं गुणों के बल पर भक्त शिरोमणि हनुमान जीवन की प्रत्येक कसौटी पर खरे उतरते हैं। रामकथा में हनुमानजी का चरित्र अत्यंत प्रभावशाली है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों को मूर्त रूप देने में उन्होंने महती भूमिका निभाई थी। महावीर हनुमान के विशिष्ट चारित्रिक गुणों को यदि युवा पीढ़ी अपने जीवन में उतार ले, तो वह अपने साथ- साथ राष्ट्र के निर्माण में भी उपयोगी योगदान कर सकती है।