अब काम के दौरान बात कर पाएँगे जवान अपने परिवार जनों से, नक्सल प्रभावित इलाक़ों में मोबाइल नेटवर्क का सरकार कर रही विस्तार
छत्तीसगढ़ समेत सभी नक्सल प्रभावित राज्यों में तैनात जवानों का तनाव दूर करने के लिए सरकार मोबाइल नेटवर्क का विस्तार कर रही है।
(एनएलएन मीडिया-न्यूज़ लाइव नाऊ) : छत्तीसगढ़ समेत सभी नक्सल प्रभावित राज्यों में तैनात जवानों का तनाव दूर करने के लिए सरकार मोबाइल नेटवर्क का विस्तार कर रही है। ताकि जवान न परिवार और दोस्तों के संपर्क में रहे, बल्कि मनोरंजन के लिए इंटरनेट का भी इस्तेमाल कर सकें। उधर, स्मार्टफोन के इस्तेमाल से सुरक्षाबल के जवानों की एकाग्रता भंग हवाला देकर ड्यूटी के दौरान जवानों के स्मार्ट फोन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। राज्य पुलिस के अफसरों के अनुसार ड्यूटी के दौरान जवानों के स्मार्टफोन फोन या मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर रोक है। लेकिन ड्यूटी खत्म करने के बाद वे इसका उपयोग कर सकते हैं।छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में नक्सल मोर्चे पर तैनात जिला बल के जवान संदीप राठौर ने शनिवार (2 जून) को खुद को गोली मार ली। आत्महत्या की वजह पारिवार की बताई जा रही है। बीते वर्ष राज्य के लाल आतंक प्रभावित क्षेत्रों में तैनात 36 से अधिक जवानों ने खुदकशी की थी। इस दौरान एक- दो ऐसी भी घटनाएं हुईं कि तनाव में जवानों ने साथियों पर ही गोली दाग दी। जवानों का परिवार से दूर और जंगल में लगभग एकाकी रहना इस तरह की घटनाओं की बड़ी वजह है। इससे निजात दिलाने के लिए ही जवानों को मोबाइल नेटवर्क का डोज देने की तैयारी है। इसके लिए राज्य के माओवाद प्रभावित क्षेत्र में एक हजार से अधिक मोबाइल टॉवर खड़े किए जाएंगे। केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद इसकी कवायद भी तेज कर दी गई है।मोबाइल टॉवर की मंजूरी को लेकर केंद्रीय गृहमंत्रालय की तरफ से राज्य सरकारों को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि 10 राज्यों के 96 वाम चरमपंथ प्रभावित (एलडब्ल्यूइ) क्षेत्रों में 4072 टॉवर खड़े किए जाएंगे। परियोजना की कुल लागत 7330 करोड़ रुपये होगी। इस नेटवर्क का इस्तेमाल वाम चरमपंथ प्रभावित इलाकों में तैनात सुरक्षाकर्मी करेंगे। यह परियोजना मोबाइल सेवाएं भी प्रदान करेगी ताकि संपर्क रहित आबादी वाले निवासियों की मदद की जा सके। इससे क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों में सुधार होगा। यह परियोजना डिजिटल मोबाइल संपर्क की उपलब्धता के साथ पिछड़े और एलडब्ल्यूइ क्षेत्र में ई-गवर्नेंस गतिविधियों को गति प्रदान करेगी।जवानों में बढ़ती खुदकशी से चिंतित सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के आला अफसरों ने इसकी गहराई से पड़ताल कराई। राज्य पुलिस के एक आला अफसर के अनुसार जवानों की आत्महत्या की मुख्य वजह तनाव ही है। नक्सल मोर्चे में तैनात जवान घर से दूर रहते हैं। संवेदनशीन क्षेत्रों में तैनात जवानों में तनाव का स्तर ज्यादा होता है। इन इलाकों में परिवार से बात करना भी मुश्किल होता है। फोन लग नहीं पाता है, महीने बीत जाते हैं घर वालों का हाल जाने। जवानों को जब परिजन के परेशानी में होने की खबर मिलती है तब यह छुट्टी लेकर घर जाना चाहते हैं लेकिन परिस्थितिवश छुट्टी नहीं मिल पाती। इससे उनका तनाव और बढ़ जाता है।2007 से अक्टूबर वर्ष 2017 तक की स्थिति के अनुसार, सुरक्षा बलों के 115 जवानों ने आत्महत्या की। इनमें राज्य पुलिस के 76 व अर्धसैनिक बल के 39 जवान शामिल हैं। इसमें 58 ने व्यक्तिगत और पारिवारिक, 12 ने बीमारी के कारण मौत को गले लगाया। वहीं काम से संबंधित, अवकाश नहीं मिलने जैसे कारणों से नौ व अन्य कारणों से 15 ने आत्महत्या की है। 21 जवानों के खुदकुशी की वजह स्पष्ट नहीं है।सात जिलों वाला बस्तर संभाग के 39 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल में मात्र 841 मेबाइल टॉवर हैं। संभाग के महज 19.14 फीसद हिस्से में टेलीकॉम कवरेज है। बीजापुर में 4.81, सुकमा में महज आठ तो नारायणपुर में 7.86 फीसद क्षेत्र में ही टेलीकॉम कवरेज है। बस्तर जिले में 37.40, दंतेवाड़ा में 19.89 कांकेर में 29.95 व कोंडगांवा में 30.21 फीसद क्षेत्र में ही कवरेज उपलब्ध है।छत्तीसगढ़ के स्पेशल डीजी डीएम अवस्थी का कहना है कि मोबाइल नेटवर्क बढ़ने से सुदूर वन क्षेत्रों में तैनात जवानों का एकाकीपन दूर होगा। परिवार और दोस्तों के साथ लगातार संवाद होगा इससे उनका तनाव भी कम होगा। नेटवर्क बढ़ने से वहां रहने वाले आम लोगों को भी फायदा होगा।