जानिए क्या होता है पित्री पक्ष में श्राद्ध का महत्व
श्राद्ध कर्म जिसमें पिंड दान आैर तर्पण आदि सम्मिलित होते हैं। श्राद्ध पूजा में समय का अत्याधिक महत्व होता है
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : पूर्वजों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाय वही श्राद्ध है। इसीलिए इस काल को श्राद्घ काल या महालय भी कहा जाता है। श्राद्ध कर्म जिसमें पिंड दान आैर तर्पण आदि सम्मिलित होते हैं। श्राद्ध पूजा में समय का अत्याधिक महत्व होता है। एेसा कहा जाता है कि शास्त्रों में ये बाद बहुत स्पष्ट रूप से बतार्इ गर्इ है कि श्राद्घ तिथि पर किस समय पर किसका श्राद्घ किया जाये ताकि पितरों को पूर्ण संतुष्टि प्राप्त हो सके। इस बारे में मान्यता है कि कुतप वेला श्राद्घ कर्म के लिए सर्वश्रेष्ठ समय होता है। ये लगभग दोपहर का समय होता है जो दिन का आठवां मुहूर्त माना जाता है। ये अवधि 11 बज कर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट के बीच रहती है। अत सभी को इसी दौरान श्राद्घ कार्य पूरे करने का प्रयास करना चाहिए। इतना ही नहीं मातृ आैर पितृ श्राद्घ के साथ साथ अन्य श्राद्घों के अनुसार भी सही समय का जिक्र शास्त्रों में किया गया है। जैसे मातृ श्राद्घ को पूर्वाह्न में करना चाहिए। इसे अन्वष्टका श्राद्घ कहते हैं। पितृ श्राद्घ अपराह्न में किया जाता है। इसी प्रकार एकोदिष्ट श्राद्घ मध्याह्न में होता है। जबकि आभ्युदायिक श्राद्घ प्रात:काल में किया जाता है। एकोदिष्ट श्राद्घ के लिए मध्याह्न व्यापिनी तिथि निश्चित मानी जाती है। उसमें घट बढ़ के बारे में नहीं सोचना चाहिये। श्राद्घ के दौरान उस तिथि पर व्रत रखना चाहिए आैर ये कार्य मृत्यृ की तात्कालिक तिथि पर ही किया जाना चाहिए। वैसे ही जैसे देव कार्य पूर्वाह्न व्यापिनी तिथि पर करना सुनिश्चित माने जाते हैं। वहीं पितृ कार्यों के लिए अपराह्न व्यापनि समयाविधि को सुरक्षित किया गया है। अत: पितरों को प्रसन्न आैर संतुष्ट रखना है तो तिथि आैर समय का विशेष ध्यान रखें। यदि तिथि ज्ञात ना हो तो अंतिम महालय यानि आश्विन अमावस्या का दिन श्राद्ध सर्वोत्म होता है आैर इसे सर्वपितृ श्राद्ध योग कहा जाता है। इसी तरह स्त्रियों के लिए नवमी तिथि विशेष मानी गई है, जिसे मातृ नवमी या मातामही श्राद्घ भी कहते हैं। इस बार तारीखें के अनुसार श्राद्घों का क्रम इस प्रकार रहेगा।