नेपाल के काठमाण्डु में ‘ईशपुत्र’ ने की पशुपति नाथ से विश्व शान्ति की प्रार्थना
नेपाल के काठमाण्डु में 'ईशपुत्र' ने की पशुपति नाथ से विश्व शान्ति की प्रार्थना
काठमाण्डु : भारत की विश्वप्रसिद्ध पीठ ‘कौलान्तक पीठ’ के पीठाधीश्वर ‘महायोगी सत्येंद्र नाथ’ (ईशपुत्र) और ‘माँ प्रिया भैरवी’ नेपाल की धरती पर कदम रखते ही सबसे पहले ‘भगवान पशुपति नाथ’ के दर्शनों के लिए पहुंचे। ‘प्रिया-ईशपुत्र’ ने ‘पशुपति’ में ‘रुद्राभिषेक’ और ‘यज्ञ’ में संपन्न किया। लगभग 4 घंटे ‘प्रिया-ईशपुत्र’ ‘पशुपति नाथ’ मंदिर प्रांगण में ही उपस्थित रहे। उनके साथ ‘नेपाल’ के भैरव-भैरवी’ भी थे। ‘कुल देवी-देवता’ और ‘पूर्वजों’ के स्मरण से पूजा शुरू हुई और सभी की मंगल कामना के साथ ‘कर्मकाण्ड’ शुरू हुआ। ‘प्रिया-ईशपुत्र’ ने ‘विश्व शांति’ की मंगल कामना की। ‘प्रिया-ईशपुत्र’ लोगों के लिए ‘पशुपति’ में भी आकर्षण का केंद्र बने रहे। उनहोंने पूरे मंदिर परिसर के दर्शन किये और अपनी और से भोग और भंडारा भी प्रदान किया।
इस पूरे कार्यक्रम के दौरान ‘पशुपति नाथ’ मंदिर ट्रस्ट के कर्मचारी ‘प्रिया-ईशपुत्र’ के साथ उपस्थित रहे और उन्हें मंदिर के विभिन्न भागों से ‘परिचित’ करवाते रहे। इस अवसर पर ‘ईशपुत्र’ ने कहा कि ‘कौलान्तक पीठ’ की नेपाल शाखा ‘नेपाल’ के लिए अति शीघ्र कार्यालय खोलेगी और उन्हें पीठ की परम्पराओं और ज्ञान से जुड़ने का अवसर मिलेगा।
‘ईशपुत्र’ ने कहा ‘नेपाल’ का ‘आध्यात्मिक’ महत्त्व सदियों से रहा है। ये सिद्धों और ऋषि-मुनियों की भूमि है। यहाँ तपस्वियों को तप करके आनंद मिलता है। युवाओं को ‘नेपाली’ संस्कृति को कायम रखना चाहिए और अपने आध्यात्मिक महत्त्व को भी नष्ट नहीं होने देना चाहिए। ‘प्रिया-ईशपुत्र’ ने भगवान ‘मत्स्येन्द्र नाथ और गुरु गोरक्ष नाथ’ के जीवन के प्रेरक प्रसंगों पर भी प्रकाश डाला। उनहोंने कहा कि हिमालय गोद में अनेकों रहस्य और ज्ञान-विज्ञान छिपे हैं। जरूरत उनको सीखने और अपनाने की है। ‘प्रिया-ईशपुत्र’ ने साधना और साकारात्मक सोच पर बल दिया। ‘प्रिया-ईशपुत्र’ काठमांडू के ‘क्राउन प्लाज़ा सोल्टी’ में ठहरे हुए हैं। ज्ञात हो कि ‘ईशपुत्र’ नेपाल के ‘हिमालयों’ में इन दिनों साधना प्रवास पर हैं।