मकर संक्रांति का महत्व , पूजा विधि और शुभ काल।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्ष‍िणायन से उत्तरायण होते हैं। इस दिन तड़के स्‍नान कर सूर्य उपासना का विशेष महत्‍व है। मकर संक्रांति के मौके पर खिचड़ी और तिल-गुड़ दान देने का विधान है।

पंडित केदार मुरारी के अनुसार मकर संक्रांति के दिन दिन सूर्य उत्तरायण होता है यानी कि पृथ्‍वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। परंपराओं के मुताबिक इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। देश के विभिन्‍न राज्‍यों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हालांकि प्रत्‍येक राज्‍य में इसे मनाने का तरीका जुदा भले ही हो, लेकिन सब जगह सूर्य की उपासना जरूर की जाती है। लगभग 80 साल पहले उन दिनों के पंचांगों के अनुसार मकर संक्रांति 12 या 13 जनवरी को मनाई जाती थी, लेकिन अब विषुवतों के अग्रगमन के चलते इसे 13 या 14 जनवरी को मनाया जाता है। इस साल मकर संक्रांति 14 जनवरी को बनाया जायेगा।



शुभ मुहूर्त

साल 2018 में मकर संक्रांति 14 जनवरी 2018, रविवार के दिन मनाई जाएगी.

पुण्य काल मुहूर्त- रात 02:00 बजे से सुबह 05:41 तक

मुहूर्त की अवधि- 3 घंटा 41 मिनट

संक्रांति समय– रात 02:00 बजे

महापुण्य काल मुहूर्त– 02:00 बजे से 02:24 तक

मुहूर्त की अवधि- 23 मिनट

 

क्‍या है मकर संक्रांति? 

सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं। एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है। एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है. हालांकि कुल 12 सूर्य संक्रांति हैं, लेकिन इनमें से मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति प्रमुख हैं।




क्‍यों मनाई जाती है मकर संक्रांति?

सूर्यदेव जब धनु राशि से मकर पर पहुंचते हैं तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व इसलिए अधिक है क्‍योंकि इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायण देवताओं का दिन माना जाता है। मकर संक्रांति के शुभ मुहूर्त में स्‍नान और दान-पुण्य करने का विशेष महत्‍व है। इस द‍िन ख‍िचड़ी का भोग लगाया जाता है। यही नहीं कई जगहों पर तो मृत पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए ख‍िचड़ी दान करने का भी व‍िधान है। मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का प्रसाद भी बांटा जाता है। कई जगहों पर पतंगें उड़ाने की भी परंपरा है।

मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण होते है।. उत्तरायण देवताओं का अयन है। एक वर्ष दो अयन के बराबर होता है और एक अयन देवता का एक दिन होता है। 360 अयन देवता का एक वर्ष बन जाता है। सूर्य की स्थिति के अनुसार वर्ष के आधे भाग को अयन कहते हैं। अयन दो होते हैं-. उत्तरायण और दक्षिणायन। सूर्य के उत्तर दिशा में अयन अर्थात् गमन को उत्तरायण कहा जाता है। इस दिन से खरमास समाप्‍त हो जाते हैं। खरमास में मांगलिक काम करने की मनाही होती है, लेकिन मकर संक्रांति के साथ ही शादी-ब्‍याह, मुंडन, जनेऊ और नामकरण जैसे शुभ काम शुरू हो जाते हैं। मान्‍यताओं की मानें तो उत्तरायण में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है। धार्मिक महत्व के साथ ही इस पर्व को लोग प्रकृति से जोड़कर भी देखते हैं जहां रोशनी और ऊर्जा देने वाले भगवान सूर्य देव की पूजा होती है।

मकर संक्रांति की पूजा विधि
भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। तिल को पानी में मिलाकार स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस दिन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।

मंत्र

मकर संक्रांति के दिन स्नान के बाद भगवान सूर्यदेव का स्मरण करना चाहिए। गायत्री मंत्र के अलावा इन मंत्रों से भी पूजा की जा सकती है।
1- ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:

2-  ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:

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