बाबाओं के राज्यमंत्री बनने की ख़बर से कई फ़र्ज़ी राजनीतिक और मीडिया घरानों की खुली पोल।
'बाबाओं की बुलिंग' इस देश में कोई जानबूझ कर करवा रहा है और इसके पीछे गहरा षडयंत्र है।
(एनएलएन मीडिया-न्यूज़ लाइव नाऊ) दिल्ली: मध्य प्रदेश में मंत्री बनाए गए बाबाओं के कारण ही सही लेकिन कथित मीडिया घरानों और राजनीतिक दलों की ‘काली कुंडली’ अब सामने आने लगी है। लगभग सभी दल और मीडिया कंपनियां लोकतन्त्र, समानता और अधिकारों की बात करते हैं। लेकिन ज्यों ही बाबाओं का नाम लिया जाए, इनमें से अधिकांश को ‘दिमाग़ी दौरे’ पड़ने लगते हैं। सभी दल और मीडिया कंपनियां बाबाओं की ऐसी आलोचनाओं पर उतर आते हैं कि मानो ये बाबा ‘भारत’ देश के नागरिक नहीं बल्कि रोहिंग्या हों। इस देश में जहाँ कि साधु-संतों, बाबाओं, ऋषि-मुनियों का ही ये पूर्ण वास्तविक देश रहा हैं आज इनमें से ये देश किसी को भी देखना नहीं चाहता, लेकिन ऐसा हुआ कैसे? आज आप यदि सोशल मीडिया, राजनीतिक दलों और मीडिया कंपनियों को गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि ‘भारत’ में अधिकांश लोग इनसे जुड़े हैं। अब ये कथित दल और मीडिया कंपनियां अपना अजेंडा आप पर थोपना चाहती है इसलिए आपको पता भी नहीं चलता कि ये किस तरह आपके ज़हन में ज़हर भर देते हैं। क्या आपको हैरानी नहीं होती कि आसाराम को बलात्कारी-बलात्कारी कह कर, हर दिन कोई आपके कान या आँख तक पहुँचता रहता है। बाबाओं के काण्ड हर कुछ दिनों में बार-बार सामने लाये जाते हैं और सलमान खान हत्या के आरोप से बच निकलने बाद, जब हिरन के मामले में 5 साल के लिए अंदर किये जाते हैं, तो भी लोग सलमान खान को गलियां देने के बजाये, सलमान खान और आसाराम को साथ जोड़ कर, आसाराम को ही फिर से बड़ा गुनहगार दिखाना चाहते हैं। ये लोग केवल सलमान खान की बात क्यों नहीं करते? ये कोई संयोग नहीं है महाराज! यही खबरों का अवचेतन पर पड़ने वाला गहरा असर है। क्या आपने गौर किया कि भारत के परस्पर विपरीत मीडिया घराने एनडी टीवी और रिपब्लिक जो बिलकुल एक दूसरे को नहीं सुहाते, ये भी बाबाओं के मामले में एक हो जाते हैं। सरकारें बाबाओं के लिए ना तो आरक्षण लाएगी, ना ही कोई नीति या आयोग का गठन करेगी, बस उनको भगवान भरोसे छोड़ दो, क्योंकि लोकतंत्र बस! उनके लिए ही नहीं है। इस देश में बाबाओं के नाम से कई राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंक रहे हैं लेकिन बाबाओं के हित की किसी को कोई चिंता नहीं है। भारत बाबाओं की बुलिंग में दुनिया भर में नंबर-1 पर है। दम है तो ज़रा दलितों की बुलिंग कीजिये, पिछड़ों की कीजिये, किसी जाती या समुदाय विशेष की कीजिये, आपको नानी याद आ जायेगी। अब बाबाओं पर जो मन में आये कहिये। लेफ्ट विचार धारा के सभी दल, कांग्रेस, समाजवादी हो, बसपा, आम आदमी पार्टी या नार्थ-साउथ की राजनीतिक पार्टियां, कोई भी बाबाओं को देखना नहीं चाहता। जबकि वो भी लोकतंत्र में एक नागरिक हैं। बस अंतर ये है कि वो अपने तौर तरीकों और विश्वासों से ईश्वर और धर्म को मानते हैं बाकी नहीं। जबकि यही लोकतंत्र उनको ऐसा करने का अधिकार भी देता है। लेकिन आप देखेंगे कि उनके विश्वास को अंधविश्वास सावित करके, उनको ये देश कैसे ‘बुलिंग’ करता हुआ, लाचार और बेआसरा छोड़े हुए है। लोकतंत्र सभी का है! बस बाबाओं का नहीं, सचमुच उनको भगवान् ही पाल रहा है। इस देश के ‘अवतारी सेल्फ स्टाइल्ड पत्रकार एनडीटीवी पीठाधीश्वर श्री श्री रवीश जी’ दलितों, पिछड़ों, किसानों गरीबों के ऐसे-ऐसे उदहारण ढूढ़ लाएंगे कि आप वाह कह उठोगे! पर बाबाओं पर कभी नहीं! वहां तो बस धन और पूँजीपती बाबा, बलात्कारी और धोखेबाज़ बाबा ही ढूढने हैं। गलती से किसी बाबा को ठीक बता दिया तो बरसों की मेहनत गई पानी में। वहीँ देश के एक अन्य ‘महावतारी सेल्फ स्टाइल्ड पत्रकार रिपब्लिक पीठाधीश्वर श्री श्री अर्णव गोस्वामी जी महाराज’ है। रामरहीम जेल जाएँ तो उनका कोई समाजसेवी कार्य नहीं दिखाएंगे, उनका नाम गिनीज़ बुक में क्यों है, ये नहीं बताएँगे! लेकिन उनके प्यारे बॉलीवुड के ‘सो कॉल्ड भाई’ जेल जाएँ तो कितने लोग बॉलीवूड से इस फ़ैसले के खिलाफ हैं ये तो दिनभर दिखाएंगे जी। आसाराम के समर्थक, रामरहीम के समर्थक भी चिल्लाते रहे, धरना-प्रदर्शन करते रहे, तब इन ‘मीडिया मठाधीशों’ को जरूरी नहीं लगा दिखाना और उनकी बात सुनना। 30 से 40 रामरहीम समर्थक मारे गए उनके परिवारों का रिएक्शन क्या जाना किसी मीडिया ने? और जब हम इन ‘सेल्फ स्टाइल्ड मीडिआ मठाधीशों’ के ख़िलाफ़ आवाज उठायें, तो कहेंगे कि देखो ‘फिर फेक न्यूज़’ का खेल शुरू। क्योंकि सत्यवादी ‘हरिश्चंद्र की संतानें’ तो बस यही हैं। ‘सो कॉल्ड मीडिया घराना एनडी टीवी’ इन 5 मंत्री बाबाओं के बारे में बहुत कुछ लिखता है जैसे एक उदहारण ये है कि एक बाबा स्वामी नर्मदानंद ने कहा
” मुझे जन्म से ही आंखों में दिक्कत थी, भगवती की कृपा से जब 2014 में परिक्रमा की तो मुझे काफी आनंद हुआ है। मां का किस प्रकार से धन्यवाद करें वो जीवनदायिनी है मेरे लिए दृष्टिदायिनी भी है क्योंकि मेरी आँखों की रोशनी नर्मदा परिक्रमा से लौट आयी” अब एनडीटीवी का कहना है कि नेत्रहीनता के नाम पर उन्होंने रेलवे का पास बनवाया, रियायत में यात्रा की, जिसे वे खुद स्वीकारते हैं। “89 में नवसारी में डॉक्टरों ने चेकअप किया था। वहां लिखकर दिया था रेलवे के पास के लिए। तब से जब बाहर जाना होता है, बाकी साथ के लोगों का टिकट बनता था हमारा भी हाफ टिकट बनता था।”
दरअसल ‘सो कॉल्ड मीडिया घराना एनडी टीवी’ ये बताना चाहता है कि देखो बाबा झूठ बोल रहा है वो अँधा होने की नौटंकी कर रहा था। हालाँकि बाबा इसे चमत्कार मानते हैं लेकिन संभव है खान-पीन में सुधार या दवा, किसी भी कारण बाबा ठीक हो गए, लेकिन आस्था उनकी इसे चमत्कार ही मानती है। समझदार समझ जाएगा, पर इन लोगों को तो सावित तो यही करना है कि बाबा फ्राड है अंधविश्वासी है। ताकि कोई भी बाबा मंत्री ना बन जाए। मेरे लेख को पढ़ कर तर्क देने वालों के दिमाग तुरंत चलने लगेंगे, लेकिन उनको भी पता है कि भारत में लोग, मीडिया, पुलिस-प्रशासन, न्यायपालिका तक बाबाओं के साथ ‘डिस्क्रिमिनेशन’ जारी रखे हुए हैं। इसलिए भारत छोड़ कर बाहर जाने वाले रसूखदार बाबाओं की लम्बी लिस्ट है। हालाँकि कुछ तो विदेशों में भी इसके शिकार हुए लेकिन अधिकांश सुख से रहे और रह रहे हैं। आप कहेंगे कि मैं राजनीतिक दलों की बात क्यों नहीं कर रहा? क्योंकि उनका संबिधान पर कोई विश्वास नहीं है वो इसका बस इस्तेमाल कर रहे हैं। इस देश में धर्म को बिलकुल नहीं मानने वाले दल भी हैं। क्या वो कभी भी बाबाओं को जीने देंगे? सब जानते हैं नहीं! ये हो सकता है कि इन बाबाओं में इतनी योग्यता ना हो, मैं दावा नहीं कर रहा! लेकिन आप ऐसे-ऐसे दलित-पिछड़े, अनपढ़ राजनेताओं को देखे सकते हैं जो इन पदों पर आसीन हुए, तो बाबाओं को मौक़ा मिलते ही जिनका हाज़मा बिगड़ गया है आप उनकी ‘अलोकतांत्रिक सोच’ को देख ही सकते हैं। यहाँ तक कि जैसे ही ये घोषणा हुई, साथ ही इन बाबाओं को राज्यमंत्री का दर्जा दिए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका भी दाखिल हो गई। आखिर क्यों? खुद सोच लीजिये! मुझे पता है! अब अलग-अलग राजनीतिक दलों और विचारों के जकड़े मनोरोगी, अपने-अपने कुर्तक मुझसे करेंगे! करें! लेकिन ‘बाबाओं की बुलिंग’ इस देश में कोई जानबूझ कर करवा रहा है और इसके पीछे गहरा षडयंत्र है। सावधान! भारत!