असम की धरती पर खूनी खेल में शामिल आतंकी संगठनों में से एक उल्फा

(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) असम की धरती पर खूनी खेल में शामिल आतंकी संगठनों में से एक उल्फा भी है। उल्फा का पूरा नाम यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम (United Liberation Front of Asom) है। अपनी स्थापना के समय से अब तक उल्फा ने असम में बड़े पैमाने पर निर्दोष लोगों की हत्या की है। पिछले गुरुवार को भी उल्फा के आंतकियों ने पांच लोगों को लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया। आइए आज हम जानते हैं कि उल्फा की स्थापना कब और क्यों हुई, इसकी स्थापना के पीछे कौन लोग थे और इसके खूनी कारनामों की दास्तान पढ़ेंगे…1979 का साल था। उस समय असम में बाहरी लोगों को खदेड़ने के लिए एक आंदोलन चरम पर था। इस आंदोलन के पीछे असम का ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन नाम का संगठन था। उसी समय परेश बरुआ ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर 7 अप्रैल, 1979 को उल्फा की शिवसागर में स्थापना की। परेश बरुआ के अन्य साथी राजीव राज कंवर उर्फ अरबिंद राजखोवा, गोलाप बरुआ उर्फ अनुप चेतिया, समीरन गोगोई उर्फ प्रदीप गोगोई और भद्रेश्वर गोहैन थे। उल्फा की स्थापना का मकसद सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से असम को एक स्वायत्त और संप्रभु राज्य बनाना था। 1986 तक गुपचुप तरीके से उल्फा काम करता रहा। इस बीच इसने काडरों की भर्ती जारी रखी। फिर इसने प्रशिक्षण और हथियार खरीदने के मकसद से म्यांमार काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (केआईए) और नैशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन) से संपर्क स्थापित किया। इन दोनों संगठनों के संपर्क में आने के बाद उल्फा का खूनी खेल शुरू होता है। प्रशिक्षण और हथियार खरीदने के लिए पैसे का जुगाड़ करने के लिए उल्फा अपहरण के वसूली का धंधा शुरू कर दिया। उल्फा लोगों का अपहरण करके उसकी आड़ में वसूली करता था। इसके अलावा चाय बागानों से भी इसने वसूली करना शुरू कर दिया और उल्फा की मांग न मानने की स्थिति में लोगों की हत्या कर दी जाती। उल्फा ने बड़ी संख्या में असम के बाहर से आए लोगों की हत्या की ताकि लोग भयभीत होकर राज्य छोड़कर चले जाएं। इसने असम के तिनसुकिया और डिब्रुगढ़ जिलों में अपने शिविर स्थापित किए। जब उल्फा की हिंसक गतिविधि काफी बढ़ गई तो भारत सरकार ने उस पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठाए। 1990 में केंद्र सरकार ने उल्फा पर प्रतिबंध लगा दिया और इसके खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किए। 1998 के बाद से बड़ी संख्या में उल्फा के सदस्यों ने आत्मसमर्पण कर दिया और संगठन के सक्रिय आतंकी भूटान, बर्मा और बांग्लादेश के शिविरों में रह गए। भारतीय सेना के सूत्रों के मुताबिक, साल 2005 तक उल्फा के पास 3,000 आतंकियों का गिरोह था। वैसे अन्य स्रोतों के मुताबिक, उल्फा के आतंकियों की संख्या 4,000 से 6,000 थी। 16 मार्च, 1996 को उल्फा के सैन्य अंग संजुक्त मुक्ति फौज (एसएमएफ) का गठन किया। इसने कई बटालियन बना रखी थी और हर बटालियन के जिम्मे असम के अलग-अलग जिले थे जिसका विवरण नीचे है।

7वीं बटालियन के जिम्मे उल्फा के जनरल हेडक्वॉर्टर (जीएचक्यू) की रक्षा का काम था।
8वीं बटालियन के जिम्मे नगांव, मोरीगांव, कार्बी आंग्लोंग
9वीं बटालियन के जिम्मे गोलाघाट, जोरहाट, शिवसागर
11वीं बटालियन के जिम्मे कामरूप, नलबाड़ी
27वीं बटालियन के जिम्मे बारपेटा, बोंगाईगांव, कोकराझार
28वीं बटालियन के जिम्मे तिनसुकिया और डिब्रुगढ़
709वीं बटालियन के जिम्मे कालिखोला

अरविंद राजखोवा उल्फा का कमांडर इन चीफ, परेश बरूआ चेयरमैन जबकि प्रदीप गोगोई उपाध्यक्ष था। प्रदीप गोगोई को 8 अप्रैल, 1998 को गिरफ्तार किया गया और तब से अब तक गुवाहाटी में न्यायिक हिरासत में है। उल्फा का महसाचिव अनुप चेतिया को 7 दिसंबर, 1997 को ढाका (बांग्लादेश) में गिरफ्तार किया गया था। तब से वह ढाका की उच्च सुरक्षा वाली सेंट्रल जेल में बंद है। 4 दिसबर, 2009 को राजखोवा और उसके ‘डिप्टी कमांडर इन चीफ’ राजू बरूआ को सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने गिरफ्तार किया। अब वह असम पुलिस की हिरासत में है। चितरंजन बरुआ के जिम्मे वित्तीय मामले, शशाधर चौधरी के पास विदेशी मामले और मतिंगा के पास प्रचार सचिवालय था।
देश के अंदर बात की जाए तो कई आतंकी संगठनों से उल्फा के संपर्क थे। असम के अन्य आतंकी संगठन नैशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट बोडोलैंड (एनडीएफबी) से इसके करीबी संपर्क थे। दोनों संगठन ने भूटान में अपने शिविर स्थापित किए थे। इसका संबंध मुस्लिम यूनाइटेड लिब्रेशन टाइगर्स ऑफ असम (मुल्टा) से भी है। इसके संपर्क विदेशी आतंकी संगठनों से भी रहे हैं। म्यांमार के काचिन इंडिपेंडेस आर्मी के बारे में रिपोर्ट है कि उसने उल्फा के सदस्यों को प्रशिक्षण दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उल्फा ने ‘मुस्लिम यूनाइटेड टाइगर्स ऑफ असम’ और ‘मुस्लिम यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम’ की मदद से भारत में हथियारों की तस्करी की। हथियार बांग्लादेश के रास्ते उल्फा के पास आते थे। उसके पाकिस्तान की आईएसआई और अफगान मुजाहिदीन से भी संपर्क की बातें सामने आई। रिपोर्ट के मुताबिक, उसने अपने 200 सदस्यों को खुफिया प्रतिरोध और अत्याधुनिक हथियार तथा विस्फोटक चलाने का प्रशिक्षण दिलाया। स्वाधीनता उल्फा का मुखपत्र था। पूर्वोत्तर के तीन अन्य आतंकी संगठनों के साथ मिलकर उल्फा ने अक्टूबर, 1999 में अपनी वेबसाइट भी लॉन्च की थी। उल्फा के सरेंडर करने वाले काडरों को सुल्फा के नाम से जाना गया। ये काडर उल्फा से लड़ाई में देश के लिए काफी उपयोगी साबित हुए। असम के पूर्व मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया ने उल्फा में दरार डालने में अहम भूमिका निभाई थी। उल्फा से सरेंडर करने वाले काडरों को सैकिया ने सारी सुविधाएं उपलब्ध कराईं। सरेंडर करने वाले कई उल्फा सुरक्षा बलों में शामिल हो गए और राज्य एवं केंद्रीय बलों के लिए काम कर रहे हैं। सुल्फा और सुरक्षा बलों के संयुक्त ऑपरेशन उल्फा की कमर तोड़ दी। 9 मई, 1990: उल्फा ने चाय व्यापारी सुरेंद्र पॉल की हत्या कर दी। इस हत्या के बाद चाय बागान के प्रबंधक और कई चाय व्यापारी डर गए। वे डर से राज्य छोड़कर भाग खड़े हुए।
1 जुलाई, 1991: उल्फा काडरों ने तत्कालीन यूएसएसआर के एक इंजिनियर समेत 14 लोगों का अपहरण कर लिया।
11 अप्रैल, 1992: उल्फा ने सुरक्षा बल के 10 जवानों की हत्या कर दी।
28 अप्रैल, 1996: कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी में उल्फा के आतंकियों ने लेफ्टिनेंट कर्नल देवेंद्र त्यागी की गोली मारकर हत्या कर दी।
18 मई, 1996: तिनसुकिया के पुलिस अधीक्षक रवि कांत सिंह की उल्फा द्वारा हत्या कर दी गई।
8 जून, 1997: गुवाहाटी में उल्फा के आंतकियों ने घात लगाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत के काफिले पर हमला किया। इस हमले में महंत बाल-बाल बच गए।
4 जुलाई, 1997: सामाजिक कार्यकर्ता संजय घोष की हत्या कर दी।
24 सितंबर, 1999: चुनाव से पहले धुबड़ी में बीजेपी के लोक सभा कैंडिडेट पन्नालाल ओसवाल की हत्या कर दी गई।
27 फरवरी, 200: नलबाड़ी जिले में राज्य के पीडब्ल्यूडी और वन मंत्री नगेन शर्मा की हत्या कर दी।
30 अक्टूबर, 2008: असम में एक साथ हुए करीब 13 धमाकों में करीब 77 लोगों की मौत हो गई और 300 लोग घायल हो गए।

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