अयोध्या के राममंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम नहीं
पक्षकार सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दाखिल कर फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर सकते हैं और पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद असंतुष्ट पक्ष क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर सकता है।
(एनएलएन मीडिया – न्यूज़ लाइव नाऊ) : अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम होता है, क्योंकि इसके बाद कोई अपील नहीं होती। फिर भी फैसले से असंतुष्ट पक्ष के पास दो कानूनी विकल्प हैं। पक्षकार सुप्रीम कोर्ट में ही पुनर्विचार याचिका दाखिल कर फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर सकते हैं और पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद असंतुष्ट पक्ष क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर सकता है। हालांकि पुनर्विचार और क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई के नियम तय हैं। नियम कहते हैं कि किसी भी फैसले के खिलाफ 30 दिन के भीतर पुनर्विचार याचिका दाखिल की जा सकती है।याचिका पर वही पीठ विचार करती है जिसने फैसला दिया होता है। इसके अलावा पुनर्विचार याचिका में यह साबित करना होता है कि फैसले में साफ तौर पर त्रुटि है। पुनर्विचार याचिका पर सामान्य तौर पर खुली अदालत में सुनवाई नहीं होती। उस पर फैसला सुनाने वाली पीठ के न्यायाधीश चैंबर में सर्कुलेशन के जरिये सुनवाई करते हैं। वहां वकीलों की दलीलें नहीं होतीं, सिर्फ मुकदमे की फाइलें और रिकार्ड होता है जिस पर विचार किया जाता है। पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद 30 दिन के भीतर क्यूरेटिव याचिका दाखिल की जा सकती है। क्यूरेटिव याचिका का सिद्धांत सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल 2002 को अशोका रूपा हुर्रा मामले में तय कर दिया था। क्यूरेटिव याचिका के नियम सख्त हैं। सामान्य तौर पर क्यूरेटिव याचिका पर भी सुनवाई न्यायाधीश सर्कुलेशन के जरिये चैम्बर में ही करते हैं। क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई करने वाली पीठ में तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं और बाकी फैसला देने वाले न्यायाधीश होते हैं। मसलन, अगर दो न्यायाधीशों का फैसला है तो उस मामले में क्यूरेटिव याचिका पर तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश और दो फैसला देने वाले न्यायाधीश समेत कुल पांच न्यायाधीश सुनवाई करेंगे।
क्यूरेटिव दाखिल करने के लिए वरिष्ठ वकील का प्रमाणपत्र लगता है जो कि यह कहता है कि यह मामला क्यूरेटिव याचिका के लिए कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है। क्यूरेटिव याचिका में कोर्ट केस के तथ्यों पर विचार नहीं करता, उसमें सिर्फ कानूनी प्रश्न पर ही विचार होता है। इस मामले में क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई में थोड़ी मुश्किल आएगी। नियम के मुताबिक, तीन वरिष्ठतम न्यायाधीश सुनवाई पीठ में शामिल होने चाहिए और बाकी फैसला देने वाले न्यायाधीश शामिल होंगे। इस मामले में फैसला देने वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ में दो न्यायाधीश वरिष्ठतम हैं- मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और एसए बोबडे। अगर क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई का नंबर जस्टिस गोगोई की सेवानिवृत्ति के बाद आता है तो भी सुनवाई करने वाली पीठ में जस्टिस एसए बोबडे शामिल हैं जो कि उस समय मुख्य न्यायाधीश होंगे। इसके अलावा दो और वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना और अरुण मिश्रा पीठ में शामिल हो जाएंगे। नियम के मुताबिक बाकी न्यायाधीश फैसला सुनाने वाले होंगे यानी फैसला सुनाने वाले बाकी के तीन न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एसए नजीर शामिल हो जाएंगे। पीठ में कुल न्यायाधीश छह होंगे जिसमें से चार फैसला सुनाने वाली मूल पीठ के होंगे। ऐसे में क्यूरेटिव याचिका पर सुनवाई का सिद्धांत पूरा नहीं होता जो कि मामले में बड़ी पीठ और फ्रेश माइंड यानी नए न्यायाधीशों द्वारा विचार के उद्देश्य को पूरा करता हो। अगर पीठ में पुराने चार न्यायाधीश शामिल हैं तो फिर कोई भी फैसला उन्हीं चार न्यायाधीशों के बहुमत का होगा। वे अपने फैसले के खिलाफ नहीं जा सकते।