(न्यूज़लाइवनाउ-India) संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने पाकिस्तान को तीखी प्रतिक्रिया दी है।
बहुपक्षवाद और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की उच्च स्तरीय खुली चर्चा के दौरान उन्होंने पड़ोसी मुल्क की दोहरी नीतियों को उजागर किया। पी. हरीश ने साफ शब्दों में कहा कि पाकिस्तान का कश्मीर को लेकर बार-बार रोना रोना और सिंधु जल समझौते का अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उल्लेख करना उसकी पुरानी आदतों में शुमार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसकी संप्रभुता पर कोई भी प्रश्न या चुनौती स्वीकार्य नहीं है।
पाकिस्तान को आइना दिखाया
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार द्वारा कश्मीर पर टिप्पणी के बाद भारत की यह प्रतिक्रिया आई। यह वक्तव्य उस समय दिया गया, जब संयुक्त राष्ट्र में बहुपक्षीय संवाद और संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने पर चर्चा हो रही थी। पी. हरीश ने लगभग पांच मिनट के अपने संबोधन में भारत की विदेश नीति की स्पष्ट तस्वीर प्रस्तुत की और पाकिस्तान को उसके असली चरित्र का आइना दिखाया।
राजदूत हरीश ने अपने बयान में कहा, “यह बहस बेहद प्रासंगिक है, खासकर तब जब संयुक्त राष्ट्र अपने 80 वर्षों की यात्रा पूरी कर चुका है। यह विचार करने का समय है कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर में उल्लेखित उद्देश्यों को अब तक कितना मूर्त रूप दिया गया है। साथ ही, यह भी जरूरी है कि हम यह समझें कि इन लक्ष्यों की राह में कौन-कौन सी बाधाएं रही हैं।” उन्होंने आगे कहा कि उपनिवेशवाद के अंत और शीत युद्ध की समाप्ति के दौर में संयुक्त राष्ट्र ने अहम भूमिका निभाई थी, और 1988 में शांति सेना को मिला नोबेल शांति पुरस्कार इसका प्रमाण है।उन्होंने बताया कि पिछले कुछ दशकों में संघर्षों की प्रकृति ही बदल गई है।
अब राज्यों के बजाय गैर-राजकीय तत्वों की सक्रियता बढ़ी है, जिन्हें कई बार कुछ देश अपने स्वार्थों के लिए समर्थन देते हैं। सीमा पार से धन, हथियार, आतंकियों को प्रशिक्षण और उग्र विचारधाराओं का प्रचार अब संचार तकनीक के माध्यम से तेज़ी से बढ़ा है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना की भविष्य की रणनीति पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता पर बल दिया और क्षेत्रीय संगठनों जैसे अफ्रीकी संघ की भूमिका की सराहना की।राजदूत ने कहा कि विवादों के शांतिपूर्ण निपटारे के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अध्याय 6 यही कहता है कि विवाद से जुड़े पक्ष पहले आपसी संवाद और सहमति से हल खोजें। किसी भी संघर्ष के समाधान में शामिल राष्ट्रों की सहभागिता और संकल्प आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यदि कोई देश पड़ोसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों और अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन करता है, तो उसे उसके परिणाम भी भुगतने होंगे।
उन्होंने 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए जघन्य आतंकी हमले का हवाला दिया, जिसमें 26 निर्दोष पर्यटक मारे गए थे। इसके बाद सुरक्षा परिषद ने इस कायराना हमले की निंदा करते हुए आरोपियों, उनके समर्थकों और साजिशकर्ताओं को न्याय के कठघरे में लाने की अपील की थी। इसी पृष्ठभूमि में भारत ने “ऑपरेशन सिंदूर” की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में सक्रिय आतंकी ढांचों को निष्क्रिय करना था। भारत ने यह अभियान संतुलित और सीमित रखा तथा पाकिस्तान के अनुरोध पर सैन्य कार्रवाई तुरंत रोक दी गई। उन्होंने दोहराया कि एक ही समाधान हर संघर्ष पर लागू नहीं किया जा सकता, परिस्थितियों और समय के अनुसार रणनीतियाँ बदलनी पड़ती हैं।
हरीश ने भारत और पाकिस्तान के बीच के अंतर को स्पष्ट किया: “भारत एक परिपक्व लोकतांत्रिक देश है, जो तेज़ी से प्रगति कर रहा है और समावेशी समाज की दिशा में अग्रसर है। इसके विपरीत, पाकिस्तान चरमपंथ, आतंकी गतिविधियों और लगातार विदेशी कर्ज पर निर्भर रहने वाला देश बन गया है।” उन्होंने कहा कि सुरक्षा परिषद को आतंकवाद के खिलाफ ‘शून्य सहिष्णुता’ की नीति अपनानी चाहिए। उन्होंने कटाक्ष किया कि अगर कोई सदस्य देश खुद अनुचित कार्यों में लिप्त हो और दूसरों को नैतिक शिक्षा दे, तो यह पाखंड और दोहरा मापदंड है।भारत ने एक बार फिर दोहराया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य हिस्सा है और इसकी संप्रभुता पर कोई बाहरी टिप्पणी स्वीकार्य नहीं है।
साथ ही, भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि सिंधु जल समझौता एक द्विपक्षीय करार है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने से पहले पाकिस्तान को पहले अपने उल्लंघनों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।यह कोई पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को वैश्विक मंचों पर उठाने की कोशिश की हो, लेकिन उसे खास समर्थन नहीं मिला। अधिकतर अंतरराष्ट्रीय ताकतें इसे भारत-पाकिस्तान के बीच एक द्विपक्षीय मामला मानती हैं। भारत की दृढ़ और मर्यादित प्रतिक्रिया ने उसकी छवि एक जिम्मेदार लोकतंत्र और वैश्विक शांति के समर्थक राष्ट्र के रूप में और भी मजबूत की है, जबकि पाकिस्तान का दृष्टिकोण एक बार फिर भटकाने वाली नीति तक ही सीमित रह गया है।
Comments are closed.