(न्यूज़लाइवनाउ-India) ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर धूमावती जयंती का पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। मां धूमावती को दस महाविद्याओं में सातवें स्थान पर प्रतिष्ठित देवी माना गया है। इस पावन अवसर पर किए गए विशेष साधना और उपायों से रोग, बाधाएं और आर्थिक संकट दूर होने की मान्यता है।
माँ धूमावती — रहस्य की देवी, निर्वाण की प्रतीक
माँ धूमावती, शक्ति की दस महाविद्याओं में सातवीं स्वरूपा, वह चेतना हैं जो जीवन के अंधकारमय पक्षों को आलोकित करती हैं। उनका रूप सौंदर्य का नहीं, सत्य का उद्घाटन करता है — वह सत्य जो अस्थिरता, त्याग और शून्यता के बीच छिपा है। वे विधवा के रूप में पूजी जाती हैं, किन्तु उनका यह रूप समाज की रुढ़ियों को चुनौती देता है और अस्तित्व के एक ऐसे आयाम का संकेत करता है जिसे हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।
धूम और छाया से आच्छादित उनका स्वरूप, जीवन की अनित्यता का स्मरण कराता है। वे उस स्त्रीत्व की प्रतिनिधि हैं जो अकेले भी पूर्ण है — स्वतंत्र, निर्भीक और समाधिस्थ। उनके रथ में कोई अश्व नहीं, वे कौवे पर आरूढ़ होती हैं — मृत्यु, रहस्य और संदेश के वाहक पर।
माँ धूमावती की साधना साधक को भीतर के तमस से मुक्त करती है। यह साधना आत्मविचार, वैराग्य और मोक्ष की ओर एक साहसिक यात्रा है। जो भक्त सच्चे भाव से उन्हें प्रणाम करता है, उसकी जीवन से दरिद्रता, रोग और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। वे संकटों को हरने वाली, परंतु कठोर गुरु की भांति पथ दिखाने वाली देवी हैं।
धूमावती जयंती के दिन, जब आकाश भी तपता है और पृथ्वी मौन होती है, तब उनकी आराधना साधक को गहन शांति और अंतर्दृष्टि का अनुभव कराती है।
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